*मेरा परिचय*
निशिदिन आनन्दित रहकर के,मैं नित्यानन्द कहाता हूँ।
छंदों में लेखन करता हूँ,गुरुपद पर पुष्प चढ़ाता हूँ।।
यह सनातनी संस्कृति अपनी,अविरल साहित्य लुटाती है।
वाणी के वीणा के स्वर से,अभिमंत्रित हुई सुहाती है।
मैं वाजपेय ब्राह्मण होत्री,शुभ वाजपेय यज्ञादि यजन।
शिव धाम बटेश्वर नाथ पूज्य, आराध्य करूँ सर्वदा भजन।।
इस समय सैन्य अधिकारी हूँ, शिक्षा एम. ए. तक पायी है।
पितु ,माँ ,अग्रज ,गुरु, मान्यों की,
पद रज निज माथ लगाई है।।
है सत्य शाश्वत प्रेम एक,दूसरा सत्य कुछ और नहीं।
सर्वदा बहस में जो उलझे,मुझमें है उसकी ठौर नहीं।।
मैं सर्वमेव में ब्रह्म देख,सबको अपराजित कहता हूँ।
धन वैभव भले नहीं मुझको,मन से निर्वाधित रहता हूँ।।
उपमन्यु गोत्र ऋषि से आया ,जो शिव के परम उपासक थे।
निज तन मन धन सर्वश्व समझ, शिव तत्व स्नेह के प्राशक थे।।
उनकी संतान कहाने में,गौरव का अनुभव करता हूँ।
अपने मन- वचनों - कर्मों से , भूतल की पीड़ा हरता हूँ।।
मिथ्याचारों से दूर सदा,रहने की कोशिश है मेरी।
पाखण्डी लोक द्रोहियों से, अति-घोषित रंजिश है मेरी।।
मैं कवि हूँ चारण हूँ कभी, झुकने की आदत नहीं मुझे।
अपमान जहाँ हो गुरुजन का, रुकने की आदत नहीं मुझे।।
✍?
नित्यानन्द वाजपेयी 'उपमन्यु'
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