मानवता के पथ पर चलना अपने आप मे एक...
Read More
मानवता के पथ पर चलना अपने आप मे एक संघर्ष की कहानी होती है । सांसारिक उपभोग के संसाधनों के लिए इंसान की प्रवृतियां यदि मानवता के पथ के इतर हो तो उस इंसान की इन्सानियत मर चुकी होती है । उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले भदोही के सुरियावां क्षेत्र के एक कालीन बुनकर व बिन्दुवत खेती बाड़ी करने वाले के घर मे जन्म लेकर , मां सरस्वती का एक छोटा सा सेवक जो महज 16 साल की अवस्था से ही एक शिक्षक बनने की राह पर चल पड़ा , वो भला क्या शिक्षा दे सकता था किंतु कहते है न कि पत्थर कितना भी कुरूप हो , छेनी और हथौड़ी की चोट उसे एक सुंदर, आकर्षक और मनमोहक आकार दे ही देता है , बस आज भी उन्ही चोटों की तलाश में खुद को तलाश करता हु , जहां भी ,जितनी भी चोट मिल जाये , सहर्ष स्वीकार करके खुद को एक सुंदर आकार दे सकूं ।
Less